Sunday, 13 November 2011

चलती गाड़ी पर ये 'जुर्रत', जिंदगी पर पड़ सकती है भारी



 
 
रायपुर/महासमुंद।यातायात के नियम बोझ नहीं, हमारी सुरक्षा है। इसकी जिम्मेदारी किसी पुलिस से कही ज्यादा हमारी स्वयं की है, लेकिन हमारी लापरवाही हादसों का सबब बन रही है।


यातायात पुलिस के अभियानों का वाहन चालकों पर कहीं असर नजर नहीं आ रहा है। दैनिक भास्कर ने शहर के सबसे व्यस्तम चौराहों में कुछ घंटें बिता तक देखा तो पांच सौ में से सौ से अधिक लोग वाहन चलाते समय मोबाइल से बात करते तथा करीब-करीब सभी वाहन चालक बिना हेलमेट के मिले। देखा गया कि ओवरलोड सवारी और मोबाइल पर बात करते बाइक व कार ड्राइव करना अब शगल बन गया है। वाहन चलाते समय मोबाइल की घंटी बजती है और तुरंत फोन उठा लेते हैं, कई बार तो सामने क्या आ गया कुछ पता नहीं। ऐसे में सड़क हादसों में कमी की कोई गुंजाइश नहीं है। वाहन चालकों की लापरवाही और गैर जि मेदारी की फोकस करती भास्कर की रिपोर्ट।


शहर के सबसे व्यस्तम चौराहों पर किया गया सर्वे


शहर का व्यस्ततम अंबेडकर चौक : शहर के सबसे व्यस्तम चौक के रूप में अंबेडकर चौक की गिनती होती है। इस चौक से लगा हुआ बस स्टैण्ड है, जहां से दिन भर बसों का आवागमन होता रहता है। तुमगांव जाने के लिए भी इसी चौक को पार करके जाना पड़ता है। इस चौक पर दैनिक भास्कर ने करीब एक घंटे तक नजर रखी। यहां घंटे में करीब पांच सौ से अधिक वाहन दोनों ओर से गुजरे जिसमें से करीब सौ से अधिक वाहन चालकों को मोबाइल पर बात करते देखा गया, जिसमें चौपहिया वाहन चालक भी शामिल है। नेशनल हाइवे पर स्थित होने से इस चौक पर दिन भर प्राय: सभी तरह के वाहनों का दबाव रहता है। इस एक घंटे के दौरान यातायात विभाग का एक भी सिपाही भी कहीं नजर नहीं आया। इसका यह मतलब नहीं है कि सिपाही को देखकर हमें नियमों का पालन करना है, लेकिन अकसर यह देखने में आया है कि चौक पर पुलिस तैनात रहने पर ही लोग नियमों के पालन में कुछ गंभीरता दिखाते हैं।

नेहरू चौक( कांग्रेस भवन के सामने):नेहरू चौक पर भी दिन भर वाहनों का दवाव अधिक रहता है। रेलवे स्टेशन या फिर बाजार जाने के लिए इसी चौक को पार करके जाना होता है। यह चौक भी नेशनल हाईवे पर ही स्थित है। दैनिक भास्कर ने इस चौक पर भी करीब एक घंटे तक नजर रखी। इस दौरान देखा गया कि एक घंटे में सड़क के दोनों ओर से करीब 300 से अधिक वाहन गुजरे, लेकिन शायद ही ऐसा कोई वाहन चालक देखने को मिला होगा, जो हेलमेल लगाया हो। इस चौक पर मोबाइल से बात करने वाले वाहन चालकों का आंकड़ा भी कम नहीं था। भीड़भाड़ वाले इलाकों में मोबाइल यूज करते या बिना हेलमेट के वाहन चालक चालन के डर से अचानक हड़बड़ा कर भागने की कोशिश करते हैं और ऐसे में हादसा होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। हाइवे पर मोबाइल पर बात करना और भी खतरनाक हो सकता है। इसकी जानकारी वाहन चालकों को भी है, लेकिन खतरों से खेलने के आदी हो गए हैं।

हेलमेट को तो भूल ही गए: सर्वे के दौरान भास्कर को इन दोनों चौराहों पर गिनती के लोगों को ही हेलमेट लगाए दिखे। हेलमेट को लेकर यातायात विभाग द्वारा बार-बार समझाइश देने के बाद भी वाहन चालकों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है। जब तक पुलिस की स?ती रहती है तब तक हेलमेट और फिर वही ढर्रा। लगता है लोग हेलमेट को तो भूल ही गए हैं। जबकि चिकित्सकों के अनुसार अधिकांश सड़क दुर्घटनाओं में मौत सिर पर चोंट लगने की वजह से होती है। फिर भी लोग नहीं चेत रहे हैं।

कीमती है जान रखें नियमों का ध्यान

हादसों में हर रोज हंसती खेलती जिंदगियां मौत के पहियों में पिस रही है। ये दर्द उनसे बेहतर कौन जान सकता है जिन्होंने अपनों को खोया है। जरा सी सजगता, सावधानी और जागरूकता हमें हादसों से बचा सकती है। इसके लिए जरूरी है हम अपने जीवन की कीमत समझें। हर शख्स ऐसी सावधानी बरते कि कोई मां, बेटी व बहन को जीवन भर दुख न झेलना पड़े। जो कोई भी घर से निकले हेलमेट लगाए। चलते वाहन पर मोबाइल से बात नहीं करने का याल रखे। तेज र तार से बचें ताकि जिंदगा सलामत रह पाए।


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