...तो यहां नाचते समय कुंआरी कन्याएं कपड़े नहीं पहनती
डरबन डायरी.फुरसत के लम्हे मिलना मुश्किल था। फिर भी डरबन में क्लाइमेट चेंज कान्फ्रेंस के दौरान हम कुछ न कुछ वक्त निकाल ही लेते थे। इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर से कुछ दूर पर ही है हिन्द महासागर के किनारे गरजता लहराता नार्थ बीच।
सागर की लहरें यहां देखने वाली होती हैं। गुरुवार को तय किया कि किंग शाका मरीन वर्ल्ड देखेंगे। मरीन वर्ल्ड यानी समुद्र के भीतर की अनोखी खूबसूरत दुनिया। इसमें आप समुद्री जीवों को काफी हद तक कुदरती तौर पर देख सकते हैं। लोग यहां पूरा दिन गुजारने के लिहाज से जाते हैं। पर हमारे पास सिर्फ तीन घंटे थे।
बाहर एक खूबसूरत बाजार है। यहां डरबन व क्वाजलू नटाल की स्थानीय चीजें मिलती हैं। इन्हें आप यादगार के तौर पर अपने देश ले जा सकते हैं। इनमे हैं आदिवासियों के देवताओं के मुखौटे, कबीलाई ज्वैलरी, कपड़े और ऐसे ही दूसरे सामान। मरीन वर्ल्ड से ठीक पहले एक गोलाकार मैदान है। यहां हर दिन कोई न कोई खेल तमाशा या सांस्कृतिक गतिविधि होती रहती है। मेरी और मेरे साथियों की किस्मत अच्छी थी। यहां के मूल निवासियों का एक ग्रुप पार परिक जुलू डांस की परफारमेंस दे रहा था। क्या गजब की एनर्जी थी उनके नृत्य में।
ड्राइवर मबाशा ने बताया कि जुलू आदिवासी यह नृत्य सदियों से कर रहे हैं। क्वाजलू नटाल प्रांत में जुलू रॉयल रीड डांस का एक सालाना उत्सव है। यह जुलू राजा के डरबन स्थित घर के अहाते में होता है। वस्तुत: यह नृत्य ताकत, युद्ध, खूबसूरती, संगीत और परंपराओं के प्रदर्शन का जरिया है। जुलू लड़कियों के लिए इसका अलग महत्व है।
पर्व, उत्सवों और पारंपरिक मौकों पर जब डांस किया जाता है तो लड़कियां इसमें कपड़े नहीं पहनतीं। सिर्फ कुछ ज्वेलरी या सजावटी चीजें ही होती हैं। जुलू लोगों की परंपरा है कि खास मौकों पर या सालाना जलसे में सिर्फ कुंआरी कन्याएं ही इसमें भाग ले सकती हैं।
कुछ साल पहले ही ऐसे ही एक मौके पर जब यूरोपीय पर्यटकों ने नृत्य करते वक्त उनके फोटोग्राफ लिए तो लड़कियों को एक पारंपरिक वस्त्र पहनने की हिदायत दी गई। इससे लड़कियों में काफी नाराजगी थी। दरअसल यह मौका होता है, उन्हें अपनी पवित्रता साबित करने का। खैर डांस वाकई काफी पावरफुल था। इसमें शामिल युवा लड़के लड़कियों की ताकत, फुर्ती, तेजी और जिस्म का लचीलापन देखने वाला था। पर इससे भी ज्यादा मजेदार नजारा था मरीन वर्ल्ड के भीतर का। टिकट करीब बारह सौ रुपए का था पर यहां के डॉल्फिन शो ने सारे पैसे वसूल करा दिए।
शो का एक मकसद यह भी है कि लोग डॉल्फिन और मछलियों के प्रति संवेदनशील रहें। खैर अंदर अपने ए.आर.रहमान का 'जय हो' बज रहा था। स्वीमिंग पूल के बाहर लड़कियां डांस कर रही थीं और उनके मुकाबिल थीं आठ डॉल्फिन। मछलियों की हरकतें संगीत की धुनों के हिसाब से थीं। भावविभोर कर देने वाला नज़ारा था।
कभी वह आधा शरीर पानी के भीतर कर दुम हिलाकर डांस करतीं तो कभी पानी से बाहर छलांग लगाकर। सब कुछ सामने हो रहा था फिर भी मन में यह सवाल था कि क्या मछलियां भी पालतू कुत्तों सरी की हो सकती हैं।
यह मछलियां लड़कियों के इशारों पर चल रही थीं। इसके लिए जरूर उन्हें काफी ज्यादा ट्रेनिंग दी गई होगी। डॉल्फिन शो के बाद हमनें शार्क फीडिंग देखी और समुद्री मछलियों के खूबसूरत नजारे किए। मरीन वर्ल्ड की काउंसलर कैरोन ने हमें बताया कि किस तरह इंसान समुद्री जीवन को नष्ट कर रहा है और कितनी प्रजातियां खत्म होने की कगार पर हैं। यहां उनका जीन बैंक भी बनाया गया है। अद्भुत अनुभव था।
लौटकर होटल पहुंचे तो खुद तय नहीं पा रहा था कि क्या ज्यादा अच्छा था जुलू नृत्य या डॉल्फिन डांस, शायद डॉल्फिन शो।
सुधीर मिश्र दैनिक भास्कर जयपुर में डिप्टी एडिटर हैं। पर्यावरण के मुद्दों पर लिखते रहे हैं। जलवायु बदलाव पर संयुक्त राष्ट्र संघ के कोपेनहेगन, कानकुन और डरबन में हुए पिछले तीन स मेलनों को कवर कर चुके हैं। यह डायरी हाल ही में हुए डरबन सम्मेलन के दौरान बिताए कुछ हल्के-फुल्के लम्हों पर आधारित है।
No comments:
Post a Comment