किसी व्यक्ति की मौत होने पर वहां मातम का माहौल होता है। सगे-संबंधी और रिश्तेदार उसकी मौत पर आंसू बहाते हैं। पर आपने कभी किसी की मौत पर और उसकी जलती हुई लाश के बीच बार-बालाओं को नाचते हुए देखा या सुना है? यदि नहीं तो हम आपको बताते हैं। यूपी की धार्मिक नगरी वाराणसी में कुछ ऐसा ही होता है।
यहां बाबा महाश्मशान नाग मंदिर में एक तरफ लाशे जलती हैं और दूसरी तरफ लड़कियां नाचती हैं। इनका नाच देखने के लिए पूरा शहर उमड़ता है। क्या आम, क्या खास सब इस नाच के सुरूर में झूमते नजर आते हैं। पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारी जिनके उपर व्यवस्था करने की जिम्मेदारी होती है, वो खुद ही इस नाच में शरीक होते है। यह शमां पूरी रात चलता है। जिसमें पूरा शहर जलता है।
यह सब कुछ होता है परंपरा के नाम पर। इसकी दुहाई देकर वो भी बच निकलते है, जिनके कंधों पर समाज सुधारने की जिम्मेदारी होती है। यहां का दृश्य देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। एक तरफ लाश जलाई जा रही है, दूसरी तरफ 'मुन्नी बदनाम हुई' और 'टिंकू जिया' जैसे गानों पर ठुमके लगते हैं।
स्थानीय रानू सिंह के मुताबिक, नवरात्र में यह कार्यक्रम होता है। पुरानी मान्यताओं के मुताबिक अकबर के मंत्री मानसिंह ने इस परंपरा की शुरूआत की थी। यहां स्थित शिव मंदिर में लोग मन्नत मांगते थे। इसे पूरा होने पर इस श्मशान के बीच घर की वधूयें नाचती थीं। चूंकि इस समय ऐसा होना संभव नहीं है, इसलिए लोग अपनी मन्नत पूरा करने के लिए कलकत्ता और मुंबई से बार बालायें बुलाते हैं।
कैसे बनी परंपरा
काशी के राजा मानसिंह ने इस पौराणिक घाट पर भूत भावन भगवान् शिव के मंदिर का निर्माण कराया। वह यहां संगीत का कार्यक्रम भी कार्यक्रम कराना चाहते थे। ऐसे स्थान जहां चिताए ज़लती हों वहां संगीत का कार्यक्रम करने की हिम्मत किसी में नहीं होती थी। इसलिए राजा ने तवायफें को इस आयोजान में शामिल किया। यही धीरे-धीरे परंपरा में बदल गई। लोग बाबा भूत भावन की आराधना नृत्य के माध्यम से करने से अगले जन्म को सुधारने लगे। इस तरह धर्म की इस नगरी में सेक्स वर्कर को नचा कर मोक्ष का ख्वाब पाला जाने लगा।
यहां बाबा महाश्मशान नाग मंदिर में एक तरफ लाशे जलती हैं और दूसरी तरफ लड़कियां नाचती हैं। इनका नाच देखने के लिए पूरा शहर उमड़ता है। क्या आम, क्या खास सब इस नाच के सुरूर में झूमते नजर आते हैं। पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारी जिनके उपर व्यवस्था करने की जिम्मेदारी होती है, वो खुद ही इस नाच में शरीक होते है। यह शमां पूरी रात चलता है। जिसमें पूरा शहर जलता है।
यह सब कुछ होता है परंपरा के नाम पर। इसकी दुहाई देकर वो भी बच निकलते है, जिनके कंधों पर समाज सुधारने की जिम्मेदारी होती है। यहां का दृश्य देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। एक तरफ लाश जलाई जा रही है, दूसरी तरफ 'मुन्नी बदनाम हुई' और 'टिंकू जिया' जैसे गानों पर ठुमके लगते हैं।
स्थानीय रानू सिंह के मुताबिक, नवरात्र में यह कार्यक्रम होता है। पुरानी मान्यताओं के मुताबिक अकबर के मंत्री मानसिंह ने इस परंपरा की शुरूआत की थी। यहां स्थित शिव मंदिर में लोग मन्नत मांगते थे। इसे पूरा होने पर इस श्मशान के बीच घर की वधूयें नाचती थीं। चूंकि इस समय ऐसा होना संभव नहीं है, इसलिए लोग अपनी मन्नत पूरा करने के लिए कलकत्ता और मुंबई से बार बालायें बुलाते हैं।
कैसे बनी परंपरा
काशी के राजा मानसिंह ने इस पौराणिक घाट पर भूत भावन भगवान् शिव के मंदिर का निर्माण कराया। वह यहां संगीत का कार्यक्रम भी कार्यक्रम कराना चाहते थे। ऐसे स्थान जहां चिताए ज़लती हों वहां संगीत का कार्यक्रम करने की हिम्मत किसी में नहीं होती थी। इसलिए राजा ने तवायफें को इस आयोजान में शामिल किया। यही धीरे-धीरे परंपरा में बदल गई। लोग बाबा भूत भावन की आराधना नृत्य के माध्यम से करने से अगले जन्म को सुधारने लगे। इस तरह धर्म की इस नगरी में सेक्स वर्कर को नचा कर मोक्ष का ख्वाब पाला जाने लगा।
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