अरुण वालिया की विदाई प्रधानगी की नई लड़ाई
पंकज राय, जालंधर लंबे अर्से से विवादों में रहे जिला कांग्रेस प्रधान अरूण वालिया की विदाई के बावजूद कांग्रेस में मचा घमासान फिलहाल थमता नजर नहीं आ रहा है। प्रधानगी पद से वालिया के रुख्सत होने के साथ ही नए प्रधान के लिए शह और मात का खेल फिर शुरू हो गया है। सुस्त पड़े कई नेता अचानक सक्रिय हो गए और वालिया की विदाई की खबर पुख्ता होने तक दिल्ली दरबार तक दस्तक दे डाली। नए प्रधान की दौड़ में दर्जन भर चेहरे कतार में हैं, लेकिन चुनावी माहौल में कांग्रेस का यह दांव आसान न होगा। जालंधर शहरी कांग्रेस प्रधान अरूण वालिया की कुर्सी लंबे अर्से से खतरे में थी। पहले वालिया की अगुवाई में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में प्रदेश प्रभारी गुलचैन सिंह चाढ़क के सामने कांग्रेसियों की हाथापाई, फिर पंजाब बचाओ रैली की असफलता। इस बीच वालिया के नजदीकी कंवल सचेदवा द्वारा कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ बयानबाजी। अब रविवार को पर्यवेक्षक सांसद चंद्रेश कुमारी के सामने कांग्रेस भवन में कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट। आखिर वालिया के आका भी अब बचाव के लिए मजबूर थे। इसी लिए घटना के 24 घंटों के अंदर वालिया को रुख्सत कर दिया गया। प्रधानगी की हसरत रखने वालों में निगम में विपक्ष के नेता जगदीश राज राजा, वरिष्ठ पार्षद राजिंदर बेरी, पार्षद पति मनोज अरोड़ा, पार्षद दिनेश ढल्ल, पूर्व प्रधान विजय खुल्लर, धीरज घई, अमनदीप मित्तल, मनजिंदर सिंह जौहल, अनिल वशिष्ठ के नाम चर्चा में हैं, जबकि कुछेक अंदरखाते जुगाड़ बनाने में लगे हैं। इनमें से कई नाम ऐसे हैं, जो लंबे समय से वालिया के खिलाफ सक्रिय थे, जिन्हें मौका अब नसीब हुआ है। कुर्सी पाने को कई दावेदार अपने आका की शरण में पहुंचे, तो कईयों ने शहर के मठाधीशों के दरबार में मत्था टेका। किसी के पीछे कैप्टन की पसंद है, तो किसी के पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से तार जुड़े हैं। सांसद मोहिंदर सिंह केपी अपने चहेते को कुर्सी पर बिठाना चाहते हैं, तो सांसद मनीष तिवारी भी अपने प्रिय के लिए जोड़तोड़ लगा रहे हैं। कोई केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट से संपर्क बना रहा है, तो कोई आस्कर फर्नाडीज की चिट्ठी दिखा रहा है। ऐसे में पूर्व सांसद राणा गुरजीत भी अपनी पहुंच आजमा रहे हैं। चुनावी माहौल में कांग्रेस की पतवार किसके हाथ लगती है, इसमें से तो फिलहाल सात दिनों का समय लगेगा। इतना तय है कि नए प्रधान की ताजपोशी से शहर का सियासी समीकरण और अंदरूनी गुटबाजी का रंग एक बार फिर बदलेगा।
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